कांग्रेस में दरार- तकरार.. भाजपा में बदलाव का करार

कांग्रेस में दरार- तकरार.. भाजपा में बदलाव का करार



आखिर मध्य प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस हो या फिर भाजपा.. लंबे चिंतन मंथन के साथ बंद कमरे की रणनीति फैसलों पर करार और तकरार के साथ उजागर होने लगी.. दोनों का लक्ष्य संगठन को मजबूत कर आगे बढ़ना.. बदलाव और टकराहट की स्थिति नई पीढ़ी के निर्माण और नए नेतृत्व को सामने लाने को लेकर देखने को मिली.. कमलनाथ सरकार के एक साल पूरा होने के बाद कांग्रेस की कलह सामने आ ही गई.. जिसने प्रदेश से लेकर केंद्र तक नीति निर्धारकों और कार्यकर्ताओं दोनों को चौंकाया.. समन्वय बनाने के लिए बुलाई गई बैठक से समन्वय टूटने की खबर के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ में दरार देखने को मिली… तो दूसरी ओर बंद कमरे में लंबे विचार विमर्श के बाद भाजपा में संगठन स्तर पर बदलाव देखने को मिला.. अभी भाजपा में मध्य प्रदेश का नड्डा यानी अध्यक्ष बीडी शर्मा भले ही चुन लिए गए हो लेकिन मोदी और शाह की तरह पार्टी का नेतृत्व मध्यप्रदेश में अगले 4 साल कौन करेगा इस पर फैसला सामने आना बाकी है.. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि दोनों प्रमुख दलों के विवाद और उससे जुड़े फैसले एक ही दिन सामने आए.. वह भी भोपाल से दूर दिल्ली में चाहे फिर सिंधिया का समन्वय बैठक से उठकर बाहर जाना …और कमलनाथ का सवाल के जवाब में ही सही दो टूक सिंधिया को चुनौती कि यदि उन्हें सड़क पर उतरना है तो उतर जाए… इधर भाजपा में भी प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह के उत्तराधिकारी के तौर पर राष्ट्रीय नेतृत्व ने सांसद विष्णु दत्त शर्मा को कमान सौंपने का ऐलान कर दिया.. तो शिवराज सिंह चौहान ने भी एक साथ कई संदेश अपनों और विरोधियों को मुख्यमंत्री कमलनाथ से सेटिंग की चर्चाओं पूर्ण विराम लगाने के लिए छिंदवाड़ा में मुख्यमंत्री और पुत्र सांसद नकुल नाथ के खिलाफ सीधा मोर्चा खोलकर अपनी ओर से दे दिया वह भी उनके गढ़ में घुसकर.. संगठन के कायाकल्प की जद्दोजहद में जुटी कांग्रेस और भाजपा के अंदर राज्यसभा चुनाव की आहट साफ सुनाई देखी जा सकती है .. तो मध्यप्रदेश में नई पीढ़ी नया नेतृत्व को लेकर लंबी एक्सरसाइज के निर्णायक फैसले पीढ़ी निर्माण के लिए लेने को मजबूर हो चुके हैं.. ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी जब पुरानी पीढ़ी के मुख्यमंत्री कमलनाथ नई पीढ़ी के अपने सहयोगी सिंधिया को खरी-खरी सुना कर उन्हें सड़क पर उतरने की चुनौती दे रहे हैं… तो इस विवाद की परिणति किस रूप में और कब सामने आती है.. भाजपा की नई पीढ़ी का नया चेहरा विष्णु दत्त शर्मा पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो प्रदेश की राजनीति छोड़ने को तैयार नहीं के साथ कदमताल करेंगे या फिर अपनी नई टीम के साथ मध्यप्रदेश में दिल्ली की तर्ज पर मार्गदर्शक मंडल बनाने में रुचि लेंगे..
मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा और कांग्रेस दोनों को नए प्रदेश अध्यक्ष का इंतजार था.. भाजपा में संगठन चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर मुहर नहीं लगी.. तो सस्पेंस बढ़ता गया.. लंबे इंतजार के बाद भाजपा ने नया चेहरा सामने उतार कर एक साथ कई संदेश दे दिए.. दूसरी और कांग्रेस में मुख्यमंत्री के साथ प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रहे कमलनाथ के दिल्ली दौरे के दौरान बुलाई गई समन्वय समिति की बैठक से फैसले सामने आने से पहले बवाल मचाने वाली खबर निकल कर सामने आई.. कांग्रेस के वक्त है बदलाव की लाइन को भाजपा ने आगे बढ़ाया.. संघ की पसंद.. विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वर्तमान अध्यक्ष राकेश सिंह की टीम के महामंत्री खजुराहो से सांसद विष्णु दत्त शर्मा को प्रदेश भाजपा की कमान सौंप दी गई.. जिसका भाजपा के पुरानी और नई पीढ़ी के जिम्मेदार नेताओं ने स्वागत किया.. विष्णु दत्त के नाम का जब ऐलान किया गया.. तब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल से मुख्यमंत्री कमलनाथ के क्षेत्र छिंदवाड़ा के सांसद के लिए रवाना हो रहे थे… शिवराज ने छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा हटाए जाने को लेकर उपजे विवाद पर एक साथ पिता-पुत्र यानी मुख्यमंत्री और सांसद को निशाने पर लिया.. इसे शिवराज की सोची समझी रणनीति और राष्ट्रीय नेतृत्व को भरोसे में लेकर कदम आगे बढ़ाने की कोशिश ही माना जाएगा.. भाजपा में भले ही नए अध्यक्ष का सस्पेंस खत्म हुआ ..लेकिन शिवराज के तेवर नहीं बदले.. उन्होंने कमलनाथ के गढ़ सौसर में भीड़ जुटाकर यही संदेश दिया कि मुद्दा आधारित जनता के बीच संघर्ष का माद्दा वह आज भी रखते हैं.. मुख्यमंत्री कमलनाथ के एक्शन और भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किए जाने की खबरों के बीच शिवराज ने अपनी मौजूदगी मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में जाकर दर्ज कराई.. लंबे अरसे बाद उनके साथ ना तो अध्यक्ष नेता प्रतिपक्ष और किसी दूसरे बड़े नेता ने मंच साझा किया.. इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जब कमलनाथ के निशाने पर उनकी अपनी पार्टी के सिंधिया थे.. तभी शिवराज ने अपने चिर परिचित आक्रमक अंदाज में कमलनाथ को निशाने पर लिया . बदलते राजनीतिक परिदृश्य में सवाल यहीं पर खड़े होते राज्यसभा चुनाव से पहले क्या भाजपा और कांग्रेस के अंदर संकट भरोसे का गहराएगा.. तो निर्दलीय सपा बसपा विधायकों के बजट सत्र में पाला बदलने की खबरें सामने आ सकती .. शिवराज सिंह चौहान और राकेश सिंह की अनबन की खबरों के बीच समन्वय को लेकर खड़े होते रहे सवाल.. क्या अब भाजपा में सुनाई नहीं देंगे.. जब अध्यक्ष की जिम्मेदारी विष्णु दत्त शर्मा संभालने जा रहे… विष्णु को अगले 3 साल यानी आगामी विधानसभा चुनाव से 1 साल पहले की जिम्मेदारी सौंपी गई है.. संदेश साफ विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें अपने कार्यकाल को बढ़ाना होगा.. तो उन्हें परफॉर्मेंस की कसौटी पर खरा उतर कर भी दिखाना होगा.. विष्णु दत्त को विपक्ष की राजनीति करने का मौका तो लंबी पारी खेलने का अवसर भी दिया गया है.. करीब डेढ़ दशक बाद भाजपा के अध्यक्ष के सामने बड़ी चुनौती विपक्ष की भूमिका निभाने की होगी.. यानी कांग्रेस से दो-दो हाथ करने से पहले वीडी शर्मा को भाजपा के अंदर क्षत्रपों और दिल्ली में सत्ता संगठन में दखल रखने वाले नेताओं के बीच समन्वय बनाकर आगे बढ़ना होगा.. फिर भी सवाल भाजपा के अंदर क्या नेतृत्व का संकट खत्म हो जाएगा… देखना दिलचस्प होगा भाजपा के दूसरे नेता कौन जो मोदी नड्डा की टीम में एडजेस्ट होते हैं.. सवाल प्रदेश अध्यक्ष के बाद भाजपा की पटकथा पार्टी और प्रदेश को आखिर किस दिशा की ओर ले जाएगी.. संगठन की कमान विष्णु दत्त के हाथों में लेकिन प्रदेश में पार्टी की कमान मोदी और शाह की तर्ज पर कौन संभालेगा इस पर अभी पर्दा उठना बाकी है.. इधर जिस तरह कमलनाथ ने सिंधिया को आड़े हाथ लिया.. उससे संदेश यही गया कि कमलनाथ मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की अपनी दोहरी जिम्मेदारी को लेकर सजग और सतर्क हैं ..यदि उन्हें बाहर और पार्टी के अंदर से मिलने वाली चुनौतियों का बखूबी एहसास है तो चुनौती देने वालों से निपटने की भी उन्होंने पटकथा लिख रखी है .. कमलनाथ.. मोदी शिवराज ..अमित शाह पर लगातार पलटवार के साथ हमले कर रहे.. लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर सिंधिया पर उनकी यह प्रतिक्रिया चौंकाने वाली थी.. इससे उनका आत्मविश्वास माना जाए या फिर वजह कुछ और है.. जो स्वभाव के विपरीत सार्वजनिक तौर पर वो ज्योतिरादित्य पॉलिटिक्स में नो कंप्रोमाइज के संदेश दे गए ..
सिंधिया समर्थक मंत्रियों द्वारा कैबिनेट की बैठक में दी गई चुनौती पर कमलनाथ ने भले ही एक्शन नहीं लिया हो ..लेकिन सिंधिया की प्रेशर पॉलिटिक्स पर पलटवार के साथ उन्होंने जो रिएक्शन दिया वह दोनों के बीच फ्रैक्शन बढ़ने के स्पष्ट संकेत है.. एक्शन कमलनाथ हो या फिर कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व उसे सोच समझ कर लेना होगा.. सवाल ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने वरिष्ठ नेता कमलनाथ द्वारा दी गई अपरोक्ष चुनौती को किस तरह स्वीकार करेंगे ..आखिर उनका अगला कदम क्या होगा.. क्या उनके समर्थक मंत्री विधायक लामबंद होंगे.. राज्यसभा और प्रदेश अध्यक्ष के दावेदार सिंधिया क्या अब भी सड़क पर उतरने के अपने वादे को निभाएंगे.. या फिर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के डैमेज कंट्रोल की कोशिशें समय रहते रंग लाएगी ..देखना दिलचस्प होगा जब कमलनाथ कांग्रेस में नई पीढ़ी का नेतृत्व सिंधिया के तौर पर सामने लाने का मानस नहीं बना पा रहे ..तब ज्योतिरादित्य के पास विकल्प क्या होंगे क्या उनके समर्थक और विधायक अपने महाराज को ताकत देंगे या फिर मंत्रिमंडल की मजबूरी उन्हें कमलनाथ से दूर जाने की इजाजत नहीं देगी.. प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया की रिपोर्ट पर राहुल गांधी सोनिया गांधी इस विवाद को सुलझाने की स्थिति में होंगे या फिर बात निकली है तो दूर तलक जा पहुंची है.. सवाल सिंधिया और नाथ की तकरार की वजह को लेकर भी खड़े हो चुके हैं कि आखिर वजह क्या है जो तनाव से आगे दरार की स्थिति बन गई..
सोनिया गांधी और राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कमलनाथ और कोआर्डिनेशन कमेटी के दूसरे सदस्यों ने प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया द्वारा बुलाई गई समन्वय बैठक में भाग लिया था.. इस बैठक से थोड़ी देर बाद ज्योतिरादित्य के बाहर निकलने और बाद में मुख्यमंत्री कमलनाथ से सवाल पूछे जाने के बाद संदेश यही गया कि यदि सिंधिया को वचन पत्र पूरा होने पर संदेह है..वो सड़क पर उतरना चाहते हैं. तो मुख्यमंत्री कमलनाथ ने उन्हें खरी-खरी सुनाते हुए दो टूक कह दिया कि सिंधिया स्वतंत्र है.. उन्हें यदि सड़क पर उतरना है तो उतर जाए सिंधिया और नाथ के बीच आई इस दरार की खबर पर डैमेज कंट्रोल की कोशिश दिग्विजय सिंह द्वारा यह कह कर की गई कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक-ठाक है.. और उसकी प्राथमिकता वचन पत्र पूरा करने की है और रहेगी..