माशिमं द्वारा 65 फीसदी अधिक फीस की वसूली से संकट में 19 लाख विद्यार्थी
भोपाल। मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल का एक फैसला प्रदेश भर के 19 लाख छात्र-छात्राओं के लिए संकट का सबब बन गया है। मंडल ने पहले तो 65 फीसदी अधिक परीक्षा फीस ली, तो अब प्रवेश पत्र में संशोधन के लिए तीन-तीन सौ रुपए देना पड़ रहे हैं। माध्यम परिवर्तन के लिए 900 रुपए शुल्क लिया जा रहा है। जबकि पिछले साल तक संशोधन नि:शुल्क किया जा रहा था।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने सरकार के गठन से पहले बढ़ी हुई फीस को पुरानी दर पर करने की घोषणा थी। सरकार बनने के बाद भी छात्र बढ़ी हुई फीस भरने को मजबूर हैं। मप्र माध्यमिक शिक्षा मंडल की दसवीं-बारहवीं बोर्ड परीक्षा में हर साल करीब 19 लाख के आसपास विद्यार्थी शामिल होते है। इसमें एसी-एसटी समेत विकलांग परीक्षार्थियों को परीक्षा शुल्क में कुछ छूट दी जाती है। करीब बारह लाख विद्यार्थियों से मंडल परीक्षा की पूरी फीस वसूल करता है। मूल्यांकन अधिकारियों के मानदेय में वृद्धि की गई है। मूल्यांकन अधिकारियों को मानदेय 600 रुपए प्रतिदिन मिलेगा। मानदेय बढ़ाने के बाद चार लाख तक कापी वाले मूल्यांकन केंद्र पर मूल्यांकन अधिकारी को अधिकतम 45 दिन का मानदेय, तीन लाख तक की कापी वाले मूल्यांकन केंद्र पर अधिकतम 35 दिन का मानदेय व दो लाख तक की कापी वाले मूल्यांकन केंद्र पर अधिकतम 30 दिन का मानदेय छह सौ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दिया जाएगा।
पिछले साल 550 रुपए थी फीस
मंडल द्वारा पिछले साल तक परीक्षा फीस 550 रुपए ली जा रही थी। इस फीस को मंडल ने 65 फीसदी बढ़ा दिया। फीस 550 रुपए से बढ़ाकर 900 रुपए कर दी गई। इससे मंडल ने वर्ष 2019-20 की परीक्षा में 42 करोड़ रुपए की अतिरिक्त उगाही विद्यार्थियों से की। एक साथ 65 फीसदी फीस बढ़ाने से विद्यार्थियों पर परीक्षा बोझ बढ़ा और ग्रामीण व पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले विद्यार्थियों पर आर्थिक भार आया। अब मंडल प्रवेश पत्र में संशोधन के लिए प्रति विद्यार्थियों से तीन-तीन सौ रुपए की फीस ले रहा है। इसके अलावा माध्यम परिवर्तन के लिए 9 सौ रुपए की फीस ली जा रही है। इसके साथ ही पोर्टल शुल्क 25 रुपए लगता है। प्रवेश पत्र में हर साल करीब बीस हजार से अधिक विद्यार्थी संशोधित करवाते हैं। जबकि पिछले साल तक यह कार्य नि:शुल्क किया जाता था।